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महाराणा प्रताप जयंती: आखिर क्यों उनकी मौत की खबर सुनकर अकबर भी रोया? जानिए कुछ रोचक तथ्य


Maharana Pratap Jayanti Special


480 Birth Anniversary of Maharana Pratap: राजस्थान को शुरू से ही वीर भूमि कहा जाता है. इतिहास के अनुसार अभी तक इस मिट्टी पर कई योद्धाओं ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने देश को दुश्मनों से बचाते हुए अपनी जान की बाजी लगा दी. 

maharana pratap jayanti 2020
Maharana Pratap Jayanti 2020

इनमे से मेवाड़ के वीर योद्धा और राजा महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का नाम भी भारतीय इतिहास के पानों में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है.

महाराणा प्रताप का जन्म

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईसवी में राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था. इनके पिता का नाम उदयसिंह (Udai Singh) था और माता का नाम जयवंताबाई (Jaiwanta Bai) था. 


बताया जाता है कि उनकी छाती के कवच का वजन 72 किलो, भाले का वजन 81 किलो और उनकी दोनों तलवारों का वजन 208 किलो था.

इसके अलावा महाराणा प्रताप के पास उनका एक प्रिय घोड़ा भी था जिसका नाम 'चेतक' (Chetak) था. एक बार मुगलों से युद्ध करते हुए चेतक ने महाराणा प्रताप की जान बचाई थी और उन्हें अपनी पीठ पर बिठाकर करीब 26 फीट लंबा नाला पार कराया था. 

maharana pratap jayanti 2020
Maharana Pratap Biography

जबकि इस नाले को मुग़ल सैनिक पार नहीं कर पाए थे. हालांकि इस युद्ध के बाद चेतक वीरगति को प्राप्त हो गया था.

बता दें, उन्होंने 1 मार्च, 1573 को सिंहासन की कमान संभाली थी. उस दौरान दिल्ली में मुगल शासक अकबर (Akbar) का राज था. इस दौरान अकबर सभी हिंदू राजाओं के साथ संधि-समझौता करने में लगा हुआ था.



बताया जाता है कि कई बार अकबर ने संधि का प्रस्ताव महाराणा प्रताप के पास भी भेजा था लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को हमेशा ठुकराया. आखिरकार अकबर ने मानसिंह और जहांगीर को मेवाड़ पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया.

हल्दीघाटी का युद्ध

यह युद्ध 18 जून 1576 में हुआ था. बताया जाता है इस युद्ध में मुगलों की तरफ से एक लाख से भी अधिक सैनिक थे जबकि महारण प्रताप के पास महज 22 हजार सैनिक ही थे. 

maharana pratap jayanti 2020
Battle of Haldighati - 1576

लेकिन फिर भी यह युद्ध भारत के इतिहास के पन्नों पर अमर हो गया. क्योंकि अंत तक महाराणा प्रताप की सेना ने हार नहीं मानी और मुगलों के छक्के छुड़ा दिए.

यह युद्ध करीब 4-5 घंटे तक चला था. हालांकि इस युद्ध का कोई खास नतीजा नहीं निकल पाया. लेकिन इतना जरूर था कि इस युद्ध से मुगलों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था. 
बताया जाता है इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्ज़ा हो गया था.

अकबर की दोस्ती के हमेशा रहे खिलाफ

इस एतिहासिक युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने अपने परिवार के साथ जंगलों का विचरण किया. इसी दौरान अपने बेटे अमर सिंह (Amar Singh) को भूख से तड़पते देख उन्होंने घास की रोटी बनाई थी, जिसे एक जंगली बिल्ली लेकर भाग गई. इस पल को देखकर वह कमजोर पड़ गए.

बताया जाता है जैसे ही महाराणा प्रताप के बारे में बीकानेर के कवि पृथ्वीराज राठौड़ को पता चला तो उन्होंने तुरंत उन्हें एक पात्र लिखा और उनके स्वाभिमान को फिर से जगाया. 
इसके बाद उनकी हिम्मत फिर से जागी लेकिन अपने अंत समय तक भी वह अकबर के अधीन नहीं हुए.

महाराणा प्रताप की मृत्यु

कई सालों बाद चावंड में धनुष की डोर खींचने से उनकी आंत में गहरी चोट लग गई, जिसके बाद काफी समय तक उनका इलाज भी चला. 

लेकिन 57 वर्ष की उम्र में 19 जनवरी, 1597 को उनकी मृत्यु हो गई. बताया जाता है उनका जानी दुश्मन रहा अकबर भी उनकी मौत पर काफी दुखी हुआ था.

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बताया जाता कि उस समय मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान थे, जिन्होंने इस मामले पर लिखा है-

इस दुनिया में सभी चीज समाप्त होने वाली हैं. धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जीवित रहेंगे. प्रताप ने धन-दौलत सब छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकने दिया. हिन्द के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा.

इतना ही नहीं एक बार जब अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने भारत का दौरा किया था तो उन्होंने  अपनी मां से पूछा था कि वह उनके लिए भारत से क्या लेकर आयें? 

तो उनकी मां ने भारत से हल्दीघाटी की मिट्टी मंगवाई थी. बता दें, उनकी मां महाराणा प्रताप की वीरता से बेहद प्रभावित थीं.

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